अन्य सरकारी सेवाप्रदायी संस्थानों जैसे अस्पताल, पोस्टऑफिस, बिजली ऑफिस की तरह ही थाना भी एक सेवा प्रदायी संस्था है। यह संस्था भी लोगों की सेवा एवं सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा बनाई गई है। जिस प्रकार कोई व्यक्ति पोस्ट ऑफिस जाकर कोई पत्र रजिस्ट्री कराना चाहे और पोस्ट मास्टर रजिस्ट्री के लिए इनकार नहीं कर सकता, उसी तरह थाना भी है, जहां कोई पीड़ित/सूचक अपनी व्यथा/शिकायत लेकर जाता है तो थानाध्यक्ष उसे सुनने एवं आवश्यक कारवाई करने से इंकार नहीं कर सकता है।
आज पुलिस विभाग में वरीय स्तर से इसे लागू करने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है, लेकिन आज भी कुछ थानाध्यक्ष इसे शतप्रतिशत लागू करने में आनाकानी कर रहे है। हालांकि नए कानून आने के बाद कोई थानांध्यक्ष इस प्रकार का रवैया अपनाता है तो उसको विभागीय दंड का भागी भी होना पड़ेगा। फिर भी कुछ थानेदार अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आ रहे है। आज इस आलेख के माध्यम से यही समझने का प्रयास करेंगे कि कोई थानेदार अपनी मनमानी रवैया अपनाता है, और एफआईआर लिखने/दर्ज करने से मना करता है, या टालमटोल करता है, तो उस स्थिति में एफआईआर लिखने/दर्ज कराने का कौन सा युक्ति सुलभ होगा उसकी बिन्दुवार चर्चा की जा रही है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173(1) में एफआइआर दर्ज कराने की प्रक्रिया का प्रावधान दिया गया है, जहां एफआइआर दो तरीकों से दर्ज कराया जा सकता है। पहला लिखित या मौखिक रूप से थाना पर उपस्थित होकर दूसरा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम जैसे ई मेल या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से।
अक्सर यह देखने को मिलता है कि जो भी शिकायते पीड़ित द्वारा थाना पर उपस्थित होकर लिखित या मौखिक रूप से दी जाती है, थाना द्वारा उसकी प्राप्ति प्रति नहीं दी जाती है या कारवाई नहीं की जाती हैं। उस स्थिति में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में प्रावधानित इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से प्राथमिकी दर्ज कराने का वैकल्पिक सुलभ तरीका उपलब्ध हो गया है।
वैसे थानेदार जो शिकायत की प्राप्ति नहीं देते, या करवाई करना नहीं चाहते, उनके लिएभारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में प्रावधानित इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से शिकायत करने का तरीक़ा बढ़िया उपाय है। आपको ऐसे किसी थाने में शिकायत करनी हो तो सबसे पहले आप अपनी शिकायत संबंधित थाने के व्हाट्स नंबर पर अग्रिम भेज दे। नए प्रावधान के अनुसार आपको तीन दिनों के अंदर उस आवेदन पर हस्ताक्षर बनाना है, आप दो घंटे बाद ही थाना जाकर अपना हस्ताक्षर बना दे। चुकी आपने इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अपना आवेदन भेजा है, यहां आपको प्राप्ति की पहले जैसी आवश्यकता नहीं होगी। आपका मेसेज ही अपने आप में एक इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के रूप में एक रिकॉर्ड है। आपकी शिकायत को विधिक एफ आई आर का स्वरूप देने में थाना द्वारा जांच के नाम पर ज़्यादा से ज़्यादा 14 दिनों तक लंबित रखा जा सकता है अगर शिकायत पत्र में वर्णित घटना किसी भी दृष्टिकोण से संदिग्ध प्रतीत होता है तो। परंतु यहाँ भी जाँच के लिए सर्वप्रथम थानाध्यक्ष को कम से कम पुलिस उपाधीक्षक स्तर के पदाधिकारी से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य होगा।
14 दिनों के बाद भी आपका एफ आई आर दर्ज नही किया जाता तो थानेदार को कारण बताना होगा किन परिस्थितियों में आपका एफ आई आर दर्ज नहीं किया गया। 14 दिनों के बाद आपको कारण भी नहीं बताया जा रहा है, और एफ आई आर की कॉपी भी नही दी जा रही है तब आप संबंधित थाने की शिकायत संबंधित जिले के पुलिस अधीक्षक से कर सकते है। पुलिस अधीक्षक को थाना में प्राप्ति साक्ष्य के रूप में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड व्हाट्सएप मैसेज दिखा सकते है। पुलिस अधीक्षक इसकी जांच कराकर आवश्यक कारवाई का निर्देश देंगे।
पुलिस अधीक्षक के स्तर से भी समाधान नहीं हुआ या आप पुलिस अधीक्षक के निर्णय से संतुष्ट नहीं हैं तब आप न्यायालय में मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 175 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत आवेदन कर सकते हैं। न्यायायिक दंडाधिकारी संबंधित थाना को मामले की जांच करने और एफआईआर दर्ज करने का निर्देश जारी कर सकता हैं।
इसके अतिरिक्त आप अपने अधिकारों की रक्षा के लिए माननीय उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर कर सकते हैं।
लोकायुक्त या मानवाधिकार आयोग में शिकायत - आप लोकायुक्त या राज्य मानवाधिकार आयोग में भी थानेदार के विरुद्ध शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
इसे उदाहरण के माध्यम से ऐसे समझते है-
यदि A नाम के व्यक्ति के साथ कोई अपराध घटित होता है और पुलिस उसकी शिकायत दर्ज नहीं कर रही है, तो A निम्नलिखित कदम उठा सकता हैं:
1. पहले, वह पुलिस अधीक्षक को लिखित शिकायत करेगा और उनसे एफआईआर दर्ज कराने का अनुरोध करेगा।
2. अगर पुलिस अधीक्षक भी कोई कार्रवाई नहीं करते, तो A न्यायायिक दंडाधिकारी के पास अपनी शिकायत उपस्थापित करेगा तदनुसार न्यायायिक दंडाधिकारी धारा 175 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहित के तहत उक्त शिकायत पत्र को संबंधित थाना को जांच/प्राथमिकी दर्ज करने हेतु आदेशित करेंगे।
3. इसके अलावा, A माननीय उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर कर सकता है, जिसमें वह पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का आदेश देने का अनुरोध करेगा।
4. A अपनी शिकायत लेकर लोकायुक्त / राज्य मानवाधिकार आयोग के पास भी जा सकता है।
इन प्रक्रियाओं के माध्यम से, कोई व्यक्ति थाना को प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज करने के लिए बाध्य कर सकता हैं और न्याय प्राप्त कर सकता हैं। लोक कल्याणकारी राज्य में जनता की हितों एवं सुरक्षा को सर्वोपरि माना गया है। सिर्फ जागरूक होने या जागरूकता की उत्प्रेरणा समाज को देने की आवश्यकता है।
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